
आज के डिजिटल युग में स्मार्टफोन बच्चों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए हैं। ऑनलाइन क्लास, स्टडी मटेरियल और जानकारी तक आसान पहुँच के कारण मोबाइल शिक्षा का साधन भी बन चुके हैं। लेकिन इसके साथ ही मोबाइल का अत्यधिक इस्तेमाल बच्चों की मानसिक, शारीरिक और सामाजिक सेहत के लिए खतरा भी बनता जा रहा है।
बच्चों पर मोबाइल का नकारात्मक असर
हाल ही में एक रिपोर्ट में यह सामने आया है कि 73% स्कूली बच्चे अश्लील सामग्री देखते हैं। वहीं, 80% बच्चे रोज़ाना सोशल मीडिया पर कम से कम 2 घंटे बिताते हैं। इसका सीधा असर उनकी पढ़ाई, सोचने-समझने की क्षमता और व्यवहार पर पड़ रहा है।

     ∆ स्कूल वर्क में देरी: बच्चे मोबाइल और सोशल मीडिया पर समय बिताने के कारण होमवर्क और पढ़ाई को टालते हैं।
     ∆ मानसिक रोग: लंबे समय तक स्क्रीन पर रहना, अश्लील कंटेंट देखना और गेमिंग में समय गँवाना बच्चों में तनाव, चिड़चिड़ापन और मानसिक रोगों को जन्म देता है।
     ∆ सामाजिक दूरी: मोबाइल की लत बच्चों को परिवार और दोस्तों से दूर कर रही है, जिससे उनका सामाजिक विकास प्रभावित हो रहा है।
मानसिक रोग और व्यवहार में बदलाव
यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिसूरी की एक रिपोर्ट बताती है कि 13 से 17 साल की उम्र के किशोरों पर मोबाइल और सोशल मीडिया का असर तेजी से बढ़ रहा है। ज़्यादा स्क्रीन टाइम की वजह से बच्चे अवसाद (Depression), चिंता (Anxiety) और अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं।

इसके अलावा, 40% बच्चे अपने माता-पिता से कम बातचीत करने लगे हैं। यह दूरी धीरे-धीरे उनके व्यवहार और व्यक्तित्व में नकारात्मक बदलाव ला रही है।
पोर्नोग्राफी से बढ़ते अपराध
अश्लील सामग्री बच्चों और किशोरों के मन पर गहरा असर डाल रही है। रिपोर्ट के अनुसार, 30% बच्चे संवेदनशील जानकारी साझा करने लगे हैं और 15% बच्चे पोर्नोग्राफी देखकर गलत गतिविधियों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

यह स्थिति खतरनाक है क्योंकि पोर्नोग्राफी बच्चों को गलत रास्ते पर ले जाकर अपराधों में भी शामिल कर सकती है। आंकड़ों के मुताबिक, अश्लील कंटेंट से जुड़े अपराधों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।
बच्चों के व्यवहार पर नज़र क्यों रखें?
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, माता-पिता को बच्चों की गतिविधियों और मोबाइल के इस्तेमाल पर लगातार नज़र रखनी चाहिए।
✓ बच्चों के मोबाइल पर कोई भी संदिग्ध मीडिया फाइल या चैट नहीं होनी चाहिए।
✓ स्कूल में लड़के-लड़कियों के व्यवहार में अचानक बदलाव आने पर सतर्क रहें।
✓ बच्चों की नींद का पैटर्न चेक करें। रात को देर तक मोबाइल चलाना खतरनाक है।
✓ परिवार के साथ कम बातचीत करना या खुद को कमरे में बंद रखना चिंता का संकेत हो सकता है।
भारत का कानून क्या कहता है?
देश में अश्लील कंटेंट देखना और साझा करना अपराध की श्रेणी में आता है। इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट के तहत बच्चों को पोर्न सामग्री से दूर रखने के लिए कई कड़े कानून बनाए गए हैं।

सरकार लगातार इस दिशा में कदम उठा रही है ताकि बच्चों को गलत सामग्री तक पहुँच से रोका जा सके। लेकिन इसकी सफलता तभी संभव है जब माता-पिता और स्कूल भी अपनी भूमिका निभाएं।
समाधान क्या है?
✓ बच्चों के मोबाइल उपयोग का समय सीमित करें।
✓ पढ़ाई और खेलकूद के बीच संतुलन बनाएँ।
✓ बच्चों के साथ खुलकर बातचीत करें ताकि वे सही-गलत समझ सकें।
✓ मोबाइल पर Parental Control Apps लगाएँ ताकि अनुचित सामग्री तक उनकी पहुँच रोकी जा सके।
मोबाइल और इंटरनेट आज की पीढ़ी के लिए ज़रूरी साधन हैं, लेकिन इनका गलत इस्तेमाल बच्चों को मानसिक रोगी, असामाजिक और अपराध की ओर धकेल सकता है। इसलिए ज़रूरी है कि माता-पिता, शिक्षक और समाज मिलकर बच्चों के मोबाइल उपयोग को नियंत्रित करें और उन्हें एक स्वस्थ, सुरक्षित और सकारात्मक डिजिटल वातावरण दें।






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